पृथ्वी और जीवन के लंबे उम्र में ही शामिल है।
नए वर्ष की खुशियां
पर्यटन एवं पर्यावरण चिंतक-
बीरेन्द्र श्रीवास्तव की कलम से
संभाग ब्यूरो दुर्गा गुप्ता
आईए नए वर्ष 2025 का स्वागत करें. इस नए वर्ष का स्वागत अलग-अलग देश प्रांत की सीमाओं में बँटी हुई अलग अलग संस्कृतियों के लोग अलग-अलग समय पर करते हैं क्योंकि यह खुशियों का वह समय है जब हम किसी नए आने वाले मेहमान का स्वागत उसकी सुख समृद्धि के साथ करते हैं. जी हां 01 जनवरी 2025 को नए वर्ष की खुशियां लोग अपने-अपने ढंग से खुशियों के साथ मनाएंगे. हिन्दू सनातनी समुदाय द्वारा नया वर्ष चैत मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को मनाया जाता है इसी तरह मराठी समुदाय का
नया वर्ष गुड़ीपड़वा अप्रैल के महीने में चैत मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से प्रारंभ होता है. इसी दिन आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना में उगादि के नाम से नया वर्ष मनाया जाता है. चैत्र नवरात्रि के पहले दिवस से नवरेह कश्मीरी नववर्ष का प्रारंभ होता है कश्मीरी पंडित इसे बड़ी धूमधाम से मनाते हैं. अप्रैल माह के 13 या 14 अप्रैल को बैसाखी पर्व के रूप में हमारे भारत देश की शान पंजाबी समुदाय के लोग अपने नए वर्ष का स्वागत करते हैं. नए वर्ष का आशय आने वाले वर्ष का स्वागत है ताकि आने वाला वर्ष सुख समृद्धि लेकर आए. हिंदू समुदाय के लोग चैत मास के शुक्ल प्रतिपदा से नए वर्ष का आगमन मानते हैं. प्राचीन ग्रंथों के अनुसार इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी. नए वर्ष के स्वागत के साथ ही ब्रह्मा की इस सृष्टि रचना को बचाने का दायित्व भी हम सभी के उपर सौंपा था. इसलिए ध्यान रखें नए वर्ष की खुशियों में पृथ्वी और पृथ्वी पर रहने वाले जीव जंतुओं की उम्र भी शामिल है. इसलिए हर नए वर्ष के साथ हमें इसका ध्यान भी रखना होगा कि यह पृथ्वी और इस पृथ्वी पर रहने वाले मानव सहित अन्य जीव जंतु की उम्र भी लंबी हो.
हर नए वर्ष के साथ ही पृथ्वी और इसमें रहने वाले जीव जंतु तथा मानव की उम्र बढ़ रही है या घट रही है यह चिंतन का विषय है आपने हर वर्ष आने वाले जन्मदिन पर खुशियां मनाते देखा होगा और यह कहते हुए भी सुना होगा कि आज मेरी उम्र एक वर्ष और बढ़ गई जबकि सत्यता यह है कि प्रकृति नियंता ईश्वर द्वारा आपको दिए गए कुल जीवन वर्ष में से 01 वर्ष आज आपका और कम हो गया. नए वर्ष की इन खुशियों में मैं भी आपके साथ शामिल हूं लेकिन हमें इस विचार के प्रति भी चिंतित रहना होगा कि पृथ्वी पर ईश्वर द्वारा निर्धारित जीवन की अवधि को बचाए रखा जाए क्योंकि पृथ्वी सहित सभी के जीव जन्तु का जीवन काल की अवधि निश्चित है. उसे पूरा जी लेना या असमय ही समाप्त कर देना आपके हाथों में होता है. हमारे धार्मिक ग्रंथो में भी यही कहा गया है कि आपकी और पृथ्वी की आयु निर्धारित है उसे अपने निर्धारित समय तक पहुंचाना या उसे कम कर देना केवल आपके ऊपर निर्भर है.
इस वर्ष का नया वर्ष 2025 पर्यावरण चिंतकों के लिए एक खुशखबरी लेकर जरूर आया है और वह है भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट में आई जानकारी है जो पत्र पत्रिकाओं की सुर्खियां बन गई हैं. इसमें कहा गया है कि विगत दो वर्षो में (वर्ष 2021 से लेकर 2023 तक) की रिपोर्ट में भारत का कुल वन एवं वन आवरण क्षेत्र लगभग 1445 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है, जिसमें हरियाली बढ़ाने मैं अग्रणी स्थान पर मध्य प्रदेश का नाम शामिल है. इसके साथ-साथ छत्तीसगढ़, राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा का नाम भी शामिल है इस सूचना ने हमारे सामाजिक वानिकी, वृक्षारोपण, तथा बाल उत्सव वृक्षारोपण, के साथ-साथ एक पेड़ मां के नाम जैसे योजनाओं को और आगे बढ़ाने हेतु प्रोत्साहित किया है. जिसके प्रयासों के परिणाम स्वरुप हम वनों के रकबे बढ़ाने में सफल रहे हैं.वहीं वन विकास के साथ-साथ हरियाली के वन आवरण को बढ़ाने में सफल रहे हैं. लेकिन आंकड़ों का एक पहलू यह भी है कि वन एवं वृक्ष आवरण को शामिल कर यह आंकड़े प्रस्तुत किए जा रहे हैं. अपने चिंतन में हमे यह ध्यान रखना होगा कि हरियाली का आवरण या पौधारोपण को स्थाई वन अर्थात जंगल मान लेना उचित नहीं है. क्योंकि पौधारोपण को वन (जंगल) बनने में कई वर्ष लगते हैं. इसलिए केवल वृक्षारोपण करके इन आंकड़ों के बल पर भौतिक संसाधनों के विकास हेतु वनों की अधाधुंध कटाई करने का अधिकार ले लेना किसी भी दृष्टि से न्यायोचित नहीं हो सकता. यह बातें भी किसी से छिपी नहीं है कि वृक्षारोपण छोटे-छोटे झाड़ीदार पौधों के भी किए जाते हैं जो वन नहीं बन सकते. इसी तरह क्षेत्र विशेष के अंचल में पाए जाने वाले पेड़ों की जगह सुविधा से मिलने वाले दूसरी प्रजाति के पौधे लगाकर उस वातावरण को बदलने की कोशिश की जा रही है जिसमें वे पौधे उतनी शीघ्रता से नहीं बढ़ पाते हैं. जिससे जलवायु के अनुकूल वन तैयार नहीं हो पातें. सतपुड़ा के जंगलों के कटाव के बाद सागौन के पौधों का रोपण भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है. क्योंकि सतपुड़ा के जंगलों में साल वनों की अधिकता है और यह इस जलवायु के अनुकूल पेड़ है.
. अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं केवल आधी शताब्दी अर्थात 50 वर्ष के कार्यकाल में इतने ज्यादा प्राकृतिक परिवर्तन हुए हैं जिस पर चिंता करना आवश्यक है वर्ष 1980 के बाद पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव क्षेत्र में ओजोन परत में छेद हो जाना अर्थात ओजोन परत की मोटाई कम हो जाना, मानव की सुख समृद्धि के लिए गाड़ी, मोटरों की बढ़ती तादाद, फ्रिज, एसी जैसे सुख सुविधाओं की आपूर्ति करने के लिए ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन और कार्बन डाइऑक्साइड का वातावरण में बढ़ना यह सभी कारण हमारी ओजोन परत को नष्ट कर रहे हैं जिसका दुष्प्रभाव मानव जीवन के साथ-साथ वन जीवन पर भी पड़ रहा है अपनी भौतिक सुविधाओ के लिए उर्जाकी आवश्यकता पूरा करने हेतु वनों की कटाई ,जो अप्रत्यक्ष रूप से यह भी कहा जा सकता है है कंक्रीट के भवनों का निर्माण तथा इनके निर्माण में लगने वाली नदियों के रेत का मशीनों से उत्खनन कर नदियों को सुखाने का प्रयास, जमीन पर उपलब्ध सार्वजनिक जल स्रोत कुआ, तालाब, नदी, नालों की भूमि पर कब्जा कर इनका अस्तित्व समाप्त करने की कोशिश ने टुकड़ों टुकड़ों में पृथ्वी के जीवन को कम किया है. नियम कानून में संरक्षित जलश्रोत के संरक्षण एवं विकास की चर्चा अब केवल पुराने दस्तावेज में समेट कर रख दी गई है, जो किसी सज्जन व्यक्ति को दिखाने के लिए रखे गए हैं. इसी तरह जंगलों का क्षेत्रफल भी बड़ी तेजी के साथ घटा है जो मानव सभ्यता एवं वन्य जीवन के लिए खतरे की घंटी है.
भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट का एक चिंतनीय पक्ष यह भी कहता है कि देश के सीमावर्ती इलाकों के जंगलों का वन क्षेत्र लगातार घट रहा हैं जिसमें उत्तराखंड और पूर्वोत्तर के राज्य शामिल है इसी तरह विश्व स्तर पर वन नीति के हिसाब से कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का एक तिहाई हिस्सा अर्थात 33 प्रतिशत वन क्षेत्र होना किसी भी देश के लिए आवश्यक है इसमें हमारी स्थिति मात्र 25% का आंकड़ा ही पूरा कर पाई है. जंगलों की कटाई के साथ वन भूमि पर कब्जा करने की नियत भी इसके लिए दोषी है. गांव और शहरों से लगे गांव में जंगलों को काटकर भू-माफिया द्वारा कब्जा करने के प्रयास को हतोत्साहित करना आज की आवश्यकता बन चुकी है. इसी प्रकार वन अधिकार पट्टा देने की नीति की आड़ में वनों का विनाश की नई चुनौतियों को देखते हुए राज्य एवं केंद्र सरकार को वन अधिकार पट्टा पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता है.
पूरी दुनिया में जनसंख्या वृद्धि शहरीकरण और औद्योगिक क्रांति का भौतिकवादी विकास का हर कदम वनों के विनाश का कारण बन रहा है. आंकड़ों की बात करें तब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिवर्ष एक करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र अर्थात 250 करोड़ एकड़ वन क्षेत्र की बली इस भौतिक विकास के लिए चढ़ा दी जाती है. अब तो देश के उच्चतम न्यायालय भी इस चिंता मे शामिल हो चुके हैं. इन सब के बावजूद कानून और नियमों को दरकिनार कर या उसमें कहीं जगह निकाल कर सत्तासीन जनप्रतिनिधियों द्वारा वनों की कटाई के प्रति असंवेदनशीलता चिंता का विषय है. सरगुजा अंचल के हसदो अरण्य जंगल में कोयला उत्खनन के लिए वनों को निर्ममता से काटा जाना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है.
नए वर्ष की खुशियों के बीच भी सत्यता यही है कि "वन है तो हम हैं" हम सबको गंभीरता से इसे जानने की जरूरत है यदि समय रहते हम इसे समझ नहीं पाए तब मानव सभ्यता आने वाले समय में वन समाप्ति की इस आंच में झुलसकर अपने निर्धारित उम्र से पहले ही समाप्त हो जाएगी. तब हमें नव वर्ष की शुभकामनाओं का समय भी नहीं मिलेगा. आईए इस प्रण को अपने नववर्ष में शामिल करें कि हम वनों की रक्षा के लिए एकजुट होकर इस पूरे वर्ष भर संघर्ष करेंगे और वृक्षारोपण करके नए वनों के निर्माण करने का पूरा प्रयास करेंगे.ताकि हम और हमारी पृथ्वी का जीवन आयु लंबी हो.
एक पौधा लगाकर भविष्य में वन बढ़ाने की शुभकामनाओं सहित आने वाला वर्ष आपके जीवन में स्वस्थ, सुख समृद्धि लेकर आए. यही कामना है.
नए वर्ष 2025 की शुभकामनाएं
फिर मिलते है।
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